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सात / डायरी के जन्मदिन / राजेन्द्र प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
यहीं,- गहरे सन्नाटे में,- यहीं
सिर्फ इसलिए कि यहीं आसानी है
ध्यान देने की, उस गूंज पर, जो
सारी पहचानी आवाजों की पृष्ठभूमि में
और इसीलिए उनके बगैर भी
निरंतर बजती रहती है;
जिसके आधार नहीं रहने से
कोई आवाज़ नहीं गूँजेगी;
यहीं, अनाहत के आहत होने पर भी,
अनहद की हदें जोड़ने पर भी
सुनेंगे हम,- प्रक्रिया की गूंज,-
अपनी धमनियों में,- यहीं
जुड़े हुए सीनों के गहरे सन्नाटे में, यहीं!
[१९५९]