साथियों आपस में यूँ तक़रार क्या करना / रंजना वर्मा
साथियों आपस मे यूँ तकरार क्या करना
ग़र किया तकरार तो फिर प्यार क्या करना
सांवरा जब से बसा है नैन में आ कर
अब किसी भी और का दीदार क्या करना
है समझ पाया न कोई दर्द औरों का
व्यर्थ हमदर्दी का फिर इज़हार क्या करना
चाहते सब हैं मने हर रोज़ दीवाली
दूर हों खुशियाँ तो फिर त्यौहार क्या करना
दे दिया दिल देखते ही जब कन्हैया को
लोग जब पूछें भला इंकार क्या करना
है कहाँ कोई कि जो देखे उठा नजरें
फिर कहो इस रूप का सिंगार क्या करना
दुश्मनी ले कर चले आये गले मिलने
दोस्ती ऐसों की अब स्वीकार क्या करना
हैं चलाते जो कुल्हाड़ा पांव पर अपने
बेवकूफों का यहाँ उपचार क्या करना
आग नफ़रत की जली हर ओर भड़की है
प्रेम जल से दो बुझा अंगार क्या करना