साथ चलते हैं काँपते साये
ऐसे रिश्तों को क्या कहा जाए
टूट जाने दो उस खिलौने को
बेहिसी के करीब जो आए
फिक्र, सपने, सुकूँ, कसम, वादे
मेरे हिस्से में आप क्या लाए
मफ़लिसी के अजीब हाथों से
सच का दामन पकड़ नहीं पाए
जिस्म महफूज हैं, उसे कह दो
ज़ुल्म जज़्बात पर नहीं ढाए ।