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साथ / महेन्द्र भटनागर

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कभी क्या चांद का भी साथ छूटा है ?

रहेंगे हम जहाँ जाकर
वहाँ यह चांद भी होगा,
हमारे प्राण का जीवित
वहाँ उन्माद भी होगा,

बताओ तो किसी ने आज तक क्या

चांदनी का रूप लूटा है ?

हमारे साथ यह सुख के
दिनों में मुसकराएगा,
दुखी यह देखकर हमको
पिघल आँसू बहाएगा,

बिछुड़कर दूर रहने से कभी भी

प्यार का बंधन न टूटा है !

हमारी नींद में आ यह
मधुर सपने सजाएगा,
थके तन पर बड़े शीतल
पवन से थपथपाएगा,

निरंतर एक गति से ही बहेगा

स्नेह का जब स्रोत फूटा है !