भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साधो, ऐसिइ आयु सिरानी / ललित किशोरी
Kavita Kosh से
साधो, ऐसिइ आयु सिरानी ।
लगत न लाज लजावत संतन, करतहिं दंभ छदंभ बिहानी॥१॥
माला हाथ ललित तुलसी गर, अँग-अँग भगवत छाप सुहानी।
बाहिर परम बिराग भजनरत, अंतस मति पर-जुबति नसानी॥२॥
सुखसों ग्यान-ध्यान बरनत बहु, कानन रति नित बिषय कहानी।
ललितकिसोरी कृपा करौ हरि, हरि संताप सुहृद, सुखदानी॥३॥