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साध / महेन्द्र भटनागर

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कितने मीठे सपने तुमने दे डाले
पर, धरती पर प्यार सँजोया एक नहीं !

युग-युग से जग में खोज रहा एकाकी
पर, नहीं मिला रे मनचाहा मीत कहीं,
कोलाहल में मूक उमरिया बीत गयी
सुन पाया पल भर भी मधु-संगीत नहीं,

भर-भर डाले क्षीर-सिंधु मुसकानों के
संवेदन से हृदय भिगोया एक नहीं !

एक तरफ़ तो बिखरा दीं सुषमा-पूरित
सौ-सौ मधुमासों की रंगीन बहारें,
और सहज दे डाले दोनों हाथों से
गहने रवि-शशि, तो गजरे फूल-सितारे,

पर, मेरे उर्वर जीवन-पथ पर तुमने
बीज मधुरिमा का बोया एक नहीं !