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साफ इनकार / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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पापी दुरमतिया के केना समुझाबैय रामा।
ना, ना, छोड़ि हां कि कभी बालैय हो सांवलिया॥
दिन कुल काटैय लेलु एतनो जो दे दैय रामा।
नही चाहैय पांडव तकरार हो सावलिया॥
रोज रोज भोर साम दिन दुपहरिया हो।
बकत बकत पंच थकैय हो सांवलिया॥
बातो बात बात बढ़ी गेलैय बड़ी जोर रामा।
ललकी ललकी उठैय पंच हो सावलिया॥