साबनी दोहे / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

साबन मेॅ सुलतानगंज, जगमग करै इनोर
कमरथुआ सब देवघर, चललै भोरम-भोर।1।

भीड़-भाड़ धकियांन छै, काँवर के भरमार,
सब कमरिया बोलै छै, भोला करिदा पार।2।

झरिया, रौदा, खातरें, कमरथुआ तैयार,
पन्नी ओढ़ी जाय छै, वर्षा गिरै फुहार।3।

कमरथुआ के भेष मे, चोर बजाबै झाल,
परशसन हफियाय छै, बैठी नोचै बाल।4।

जगते-जगते रातभर, आँखों लागै लाल,
तैयो पलथी मारी कं, तहियाबै छै माल।5।

पंड़ा अंड़ा खाय कें, साबन में फलहार,
जजमानऽ के खातरें, गोतिया सेॅ तकरार।6।
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गंगा माय के देश मं पानी बेची केॅ भारत कं अपमानित नै करऽ पेप्सी-कोला जहरीला
विदेशी पेय छीकै, इ तन-मन धन केरऽ हानी करै छै, हेकय नै खरीदो! नै बेचऽ।
-अजादी बचाओ आन्दोलन
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