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सामने आँखों के सारे दिन सुहाने आ गए / सिया सचदेव

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सामने आँखों के सारे दिन सुहाने आ गए
याद हमको आज वह गुज़रे ज़माने आ गए
 
आज क्यूँ उन को हमारी याद आयी क्या हुआ
जो हमें ठुकरा चुके थे हक़ जताने आ गए
 
दिल के कुछ अरमान मुश्किल से गए थे दिल से दूर
ज़िन्दगी में फिर से वह हलचल मचाने आ गए
 
ग़ैर से शिकवा नहीं अपनों का बस यह हाल है
चैन से देखा हमें फ़ौरन सताने आ गए
 
उम्र भर शामो सहर मुझ से रहे जो बेख़बर
बाद मेरे क़ब्र पे आंसू बहाने आ गए
 
हैं 'सिया' के साथ उसके शेर और उसकी ग़ज़ल
हाथ अब उसके भी जीने के बहाने आ गए