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सामने गर हो किनारा तो बहुत कुछ शेष है / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
सामने गर हो किनारा तो बहुत कुछ शेष है
हौसला ज़िंदा तुम्हारा तो बहुत कुछ शेष है
मुश्किलें देता है उनके हल भी देता है वही
नींद से जागे दुबारा तो बहुत कुछ शेष है
यह कहावत है पुरानी मन के जीते, जीत हो
आदमी का मन न हारा तो बहुत कुछ शेष है
मानता हूँ थक गये हैं तीरगी से आप पर
भेार का चमका सितारा तो बहुत कुछ शेष है
हर समय खाली कहाँ रहती हैं उसकी कश्तियाँ
गर है तिनके का सहारा तो बहुत कुछ शेष है
मुड़ के पीछे देखियेगा आप तन्हा हैं कहाँ
आपके दिल ने पुकारा तो बहुत कुछ शेष है