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सामन्त / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मुकुट छिन गया, छिन गई ज़मीन
लेकिन वे अपने अच्छे दिनों के बर्बर
दिनों के साथ जीवित हैं
वे धोखे से मारे गए बाघ के साथ
बहादुरी की मुद्रा में अपना चेहरा दिखा रहे हैं
बाबू साहब वे दिन गए जब आप रियाया को
भेड़ समझते थे, उसे अपने काँजीहाउस में हाँक कर
ज़ुर्माना लगाते थे
तुम अपने हरम में रह गए हो अकेले
तुम्हारे किले के प्राचीर पर बैठे हुए है गिद्ध
एक लोकगायक तुम्हारे पतन पर गा रहा है
लोकगीत