भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सामान्य सुखमादर्शन / शिवपूजन सहाय
Kavita Kosh से
श्यामतन भृंगकच कंज कर कंज पद कंजचख कुन्ददंत सुखमा अपार की।
सुन्दर कपोल गोल लोल कलकुण्डल कान ध्यानज्ञान मान हरै मुनिमन मार की।
रुचिर निवासा सुकनासा नन्दचन्द हाँसा अधर बिम्बकासा नखसिख छवि सार की।
शारदहूँ नारद विशारद कलाधरधर कहि ना सकैं जेहि सुफन हजार की॥
इतिश्री रामचन्द्र शृंगारवर्णन