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साम्य / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
हम नहि छी
भोर
हम नहि छी
साँझ
हम दुपहर छी।
हम नहि छी
छाउर
हम नहि छी
धुआँ
हम आगि छी।
हम नहि छी
बरफ
हम नहि
भाफ
हम पानि छी।
हम जिनगीक तारकें
नहि कसैत छी बेसी
आ ने ढ़ील करैत छी बेसी
साम्य रखबाक करैत छी प्रयास।