आशियाँ जो खाक हो गया शमां जलाने में 
कहाँ हम ठौर पाएँगे इस बेदर्द जमाने में |
नैया तो डूब जाएगी मझधार में फँसकर
पतवार गर' टूटा लहर को आजमाने में |
माली के बाग़ में बहार महफ़िल सजे कैसे 
गुल ही उजड़ गया है गुलशन सजाने में |
ईमारत सी बन रही है अरमानों के खाक पर 
एक साया दरक रहा है इसको बनाने में |
कोई बन गया है देखो जख्मों का जखीरा
काँटों के बीच जा बसा फूल को भुलाने में |
'सागर' तू कैद कर ले हर जाता हुआ लम्हा 
जन्मों लगेंगे फिर तुझे इसको भुलाने में ||