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सारंगी / कुमार मंगलम
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1.
जब तारों पर
हड्डियाँ रगड़ता है बजवैया
तब फूटता है
कोई स्वर
सारंगी का
2.
जब कभी भी
सुनो सारंगी को
लोहे पर कान दो
किसी की हड्डी घिसती है
तब जाके आवाज में असर होता है।
3.
कोमल ऊँगलियों
से नहीं
निकलते हैं स्वर
रगड़ से
घट्टे पड़ जाते हैं
फिर बजता है सारंगी।
4.
सुनते हैं जो
सिसकी
बजते सारंगी में
हड्डियों के घिसने
के गीत हैं।
5.
बेजान बाजे में
जिंदा आवाजें नहीं होती
बजवैया के आत्मा पर
ट्यून होता है जब बाज
तब जाके निकलती है कोई आवाज
सुनने वाले
बजाने वाले के
आत्मा का गीत सुनते हैं।