भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सारन प्रमण्डल से सम्बंधित स्थान / भिखारी ठाकुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्तिक:

सोनपुर मेला का नगीचा में साकिन चिरान में गोरध्वज किहाँ एक साधु बाबा कहलन जे हमार बाघ तोहरा बेटा के मांस खइहन दहिना बगल के. दूनों बेकत सरधा से चीरबऽ तब। राजा मोरध्वज कबूल कर लेलन हा। संतोस का घोड़ा पर सवार हो गइलन, छव गो बीर के पराजय कर देलन, तब से छपरा नाम परल।

छपरा छव पराजय कारी, सोची के कर्म ऊपर नाम धारी।
बाघ्ज्ञ साथ एक साधू आके, जय-जय शब्द उचारी॥
पुत्र के मांस खिया दऽ जल्दी नइखे दोसर दरकारी॥
दहिना अंग के भक्षण करीहन, बांया अलंग देहु टारी॥
रानी-राजा बाजा बजा के, निजहीं हाथ बिदारी॥
हुक्म मोताबिक तुरते कइलन, चीरन के तैयारी॥
बरबस रोकि के चीरे ना दिहलन दया भइल सरकारी॥
काम-क्रोध-मद-लोभ, मोह झट माया के जारी॥
भूपति मोरध्वज बीर धीर धरी चढ़ी गये गगन अटारी॥
तब से धाम चिरान कहावत, लगन चलल ललकारी।
अघनाशनी श्री गंगा तट पर दियरा के कहत 'भिखारी' ।

वार्तिक:

छपरा जिला में साकिन दोन-दरउली बा। भिरी दोन बस्ती में द्रोणाचार्य बना बिद्या के गुरु सुनीला जे रहलनहा।

दोहा

छपरा रहत राजेन्द्र बाबू, जीरादेई मकान। हिन्दुस्तान के मुकुटमनी, दिल्ली तकथ महान।

वार्तिक:

हिन्दुस्तान के मतलब, हिं, मतलब हिया के रही, दु के मतलब दूर तक रहीला, स के मतलब सगरो, तन के मतलब समियाना लेखा ताना देले बानी। दिल्ली राजधानी मालूम होला जे राजा दिलीप के हवन। राजा दिलीप सुरुज बंसी कुल हवन।

चौपाई:

रवि मंडल देखत लघु लागा। उदय तासु त्रिभुवन तम भाग॥

वार्तिक:

एही बंस में राजा सगर जेकर:-

चौपाई

एह राजधानी के राजा रघु, भागीरथ गंगा जी के ले अइलन राजा हरिश्चन्द्र राजा दशरथ जेकर दोहा में-

राम राम कहि राम कहि राम-राम कहि राम।
तनु परिहरि रघुबर बिरह, राउ गयउ सुरधाम॥
रा।च।मा।अयो।दी। 155

एही राजधानी के रामजी जनकपुर में धनुष तूर के जस पवलन। रावण के राजधानी दखल कइलन। पताल मंे अहिरावन के राजधानी दखल कइलन

चौपाई

जेकर नाम चार युग निकालल तिनलोक प्रसिद्ध। से ही दिल्ली राजधानी हउवन॥

5.

गाना

ध्न छपरा के लगन महुरत, पदवी घटल ना एको रत्ती।
बिन जोतल बिनु बिया गिरावत, जस करमी के बढ़त लत्ती।
अचल रचल बा पलिे से जइसे, गछिया फरती झरती।
एक के दौलत देखी एक बिनु, लकड़ी आग जरती-मरती।
आज सुराज सुदिन सुमंगल, नितः-नितः उन्नति चढ़ती।
विश्मोहनी सती के चर्चा, छन्द-कवित्त-गीत कहती।
गंगा-गंडक परम सुहावन, राजा-रंक-कवि-जती-सती।
पंडित-मूर्ख बिराजत एगरो, कहूँ अन्हार कहूँ बरतबती।
कपड़ा-सोना-चानी-सिनेमा, नाच होखत बा विविध गति।
कहत 'भिखारी' खुद जहाँवा पर, गौरीशंकर रमापति।