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सारा कुणबा भरया उमंग मैं घरां बहोड़िया आई / लखमीचंद

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सारा कुणबा भरया उमंग मैं घरां बहोड़िया आई
प्रेम मैं भर कै सासू नैं झट पीढ़ा घाल बिठाई

फूलां के म्हं तोलण जोगी बहू उमर की बाली
पतला-पतला चीर चिमकती चोटी काळी-काळी
धन-धन इसके मात पिता नै लाड लडाकै पाळी
गहणे के मैं लटपट होरयी जणूं फूलां की डाळी
जितनी सुथरी घर्मकौर सै ना इसी और लुगाई

एक बहू के आवण तै आज घर भररया सै म्हारा
मुंह का पल्ला हटज्या लागै बिजली सा चिमकारा
खिली रोशनी रूप इसा जाणूं लेरया भान उभारा
भूरे-भूरे हाथ गात मैं लरज पड़ै सै अठारा
अच्छा सुथरा खानदान सै ठीक मिली असनाई

एक आधी बै बहू चलै जणूं लरज पड़ै केळे मैं
घोट्या कै मैं जड्या हुआ था चिमक लगै सेले मैं
और भी दूणां रंग चढ़ ज्यागा हंस-खाये खेले मैं
सासू बोली ले बहू खाले घी खिचड़ी बेले मैं
मन्दी मन्दी बोली फिर मुंह फेर बहू शरमाई

देवी कैसा रूप बहू का चांदणा होरया
बिजली कैसे चमके लागैं रूप था गोरा
कली की खुशबोई ऊपर आशिक हो भौंरा
‘लखमीचन्द’ कह नई बहू थी घर देख घबराई