भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सारा जहान छोड़ के तुम से ही प्यार था / शोभा कुक्कल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारा जहान छोड़ के तुम से ही प्यार था
तुम जो भी कह रहे थे मुझे ए'तिबार था

तक़रीर नेता-जी ने जो बस्ती में आज की
उस का हर एक लफ़्ज़ हमें नागवार था

घर में ख़ुदा के देर है अंधेर तो नहीं
रहमत के दर खुलेंगे यही इंतिज़ार था

उस को हमारी चाह की कुछ भी ख़बर नहीं
जिस के लिए हमारा ये दिल बे-क़रार था

कुछ सूझता नहीं था जवानी के जोश में
ख़्वाबों के दोश पर वो अजल से सवार था

जो लोग कर रहे ये हमारी मुख़ालिफ़त
हम को ख़बर नहीं कि वो उन में शुमार था।