Last modified on 22 नवम्बर 2009, at 20:43

सारी अच्छी चीज़ें खो जाती हैं एक दिन / जया जादवानी

एक दिन सुबह सवेरे
एक सूखा पत्ता कंधे पर
पुराने बिछड़े दोस्त के काँपते हाथ-सा
सुनसान इलाके से गुज़रते
किसी रोज़
जानी-पहचानी सीटी की आवाज़
अतीत की सुरंग से गुज़रती एक ट्रेन
एक धुन वायलिन की तार से टूटी
नींद में दौड़ते हुए एक रात
जा गिरना अपने ही ख़्वाब से बाहर
छुआ नहीं जा सका कभी भी
डबडबाई आँखों का बादल
पलक झपकते ही खो जाते हैं तारे
पलक झपकते ही चाँद
खो जाती हैं सारी अच्छी चीज़ें
अपने अच्छे होने के ज़ुर्म में
फिर टकराती हैं गाहे-बगाहे
थपथपाती हुई पीठ
थककर जब हम
लगते हैं टूटने
चलते हुए रोशनी की अन्धी गली में।