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सारी दुनिया के आगे इकरार करते हो / शमशाद इलाही अंसारी

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सारी दुनिया के आगे इकरार करते हो,
तुम आसमाँ के तारे से प्यार करते हो|

न छू सकते हो, न पकड़ सकते हो उसे
फ़िर भी क्यों नाखु़दा की तलाश करते हो।

जिस्म ही नहीं रुह भी जलाता है इश्क-ए-सफ़र
क्यों इन सुर्ख़रुह शोलों की प्यास रखते हो।

वो तो नहीं मिलता अक्सर जिसकी आरज़ू है"शम्स"
तपते हुये बंजरों में फ़सलों की आस रखते हो।



रचनाकाल: 19.07.2002