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सारी प्रगति के बाद / गोविन्द कुमार 'गुंजन'

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सारी प्रगति के बाद
धरती का घूमना जारी रहेगा
होते रहेंगे दिवस-मास
मौसम बदलते रहेंगे

कोई चिड़िया
फिर गूथेगी घोंसला
कोई चीटी ले आएगी शक्कर के दाने

परमाणु विस्फोटो के बाद भी
आएगी पूर्णिमाएँ और
समुन्दरों का सीना फूल जाएगा कामना से
किसी खंडहर में बजेगी कोई वायलिन
और कोई भर जाएगा भावना से

आधी रात में
महक उठेगी रातरानी
चंपा करती रहेगी सुबह का इंतजार
खुशबू फैलाने के लिए

सारे चक्र
ऐसे ही चलेंगे ऋतुओं के
हाँ, बसंत में कम होगी
सोने सी चमक
गेहॅू का स्वाद और खो जाएगा
जुवार के दानों से
निकल जाएगी चॉदी

मगर
धरती से निकल न पाएगा
प्रेम का गुरूत्वाकर्षण
बहुत सारी चीजें बदल जाएगी
और बहुत सारी चीजें बदलने से इंकार कर देगी
वक्त बदलेगा मगर
क्या वक्त के साथ बदल जाएगें हमारे संबंध भी,
कल जब हम होगें अंतरिक्ष के वासी
तब भी
क्या हम इस धरती से प्यार करते ही रहेंगे ऐसा?