सावधान! खबरदार! / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय
तितिलियों ने फेंक दिया है पासा
उलझ गए हैं भौंरे और मंडरा रहे हैं
लगातार बार बार हो रहे हैं जार जार
मुस्कुरा रही हैं तीतिलियाँ दाबकर मुंह
सावधान खबरदार अब होशियार
समय बदल गया है इधर अधिक
तितिलियों की शक्ल में चीलों के कारनामें
व्यथित कर रहे हैं ये मौसमी दीवानें
दिख रहे हैं अधिक आजकल पहाड़ी पठार
हैरान है बैठा हुआ ऊपर का कुम्हार
उधर जुलूस में कर दिया गया है घोषित
सब हैं इधर आजकल आधुनिकता के पोषित
नहीं रही भौरों में पहले जैसी रसिकता
खलती है उनको अब तो फूलों की निकटता
बताकर सौन्दर्य गुलाब का भौरों को नचा रही हैं
जगजाहिर है पंख का शातिरपन
उड़ भर नहीं रही हैं उड़ा भी रही है
अफवाहों का बाज़ार गर्म है बहुत
कुम्हला रहे हैं फूल अपने कलीपन में ही
सिखलाया जा रहा है चुभना काँटों की तरह
होशियार सावधान हो लो खबरदार
लेकर नजर में जहर, कहर शकल में
कर रही हैं तितिलियाँ तुम्हारा इन्तजार
छोड़ दो बगीचे में तुम करना अब गुंजार
नहीं रही गुलबदन न रही गुलबहार