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सावन आया,तुम नहीं आये,नैन बन गए सावन सावन / रमेश 'कँवल'

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सावन आया, तुम नहीं आये, नैन बन गये सावन सावन
आन मिलो मुझसे अब सावन
आन मिलो मुझसे अब सावन

नीलगगन के उजले काले मेघों की ये आंख मिचोली
मूक किनारे से गंगा की लहरों की ये प्रेम-ठिठोली
आह! अभी तक अश्कों की रिमझिम से तर है मेरा दामन
आन मिलो मुझसे अब सावन
आन मिलो मुझसे अब सावन

फ़र्ज़ करे मजबूर मुझे कि ख़ुशियों की बारात फिरा दूं
और मुहब्बत तड़प तड़प क़र कहे यार संग प्रीत निभा दूं
दोनों की खींचा तानी में टूट न जाये जीवन दरपन
आन मिलो मुझसे अब सावन
आन मिलो मुझसे अब सावन

सूख गर्इ धरती, अंबर पे सावन तिश्नालब लब भटके है
घाट घाट पर लहर-लहर खुद प्यास लिये सर को पटके है
ऐसे में गर तुम आ जाओ ख़ुश हो जाये सबका तन-मन
आन मिलो मुझसे अब सावन
आन मिलो मुझसे अब सावन

देख कि सरहद से भी अब तक चौराहों पे नैन बिछाये
राह तुम्हारी तका करता हूं गली गली से आस लगाये
आ जाओ मेरी बाहों में हो जाये हर सांस सुहागन
आन मिलो मुझ से अब सावन
आन मिलो मुझ से अब सावन