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सावन और मैं / जलज कुमार अनुपम
Kavita Kosh से
इस बार सावन खफा है
लगता है कुछ अटक सा गया है
कल सपने में
गाँव आया था
कुछ चेहरे थे
और उसमें थी उदासीनता
जो मेरे है
और जिनका सिर्फ मै हूँ
साथ में बाँसवारी और ब्रह्म बाबा
उनके साथ गुजरते
पटहेरा और चुड़ीहारिन की टोकरी में
हरे रंगो की चुड़ीयाँ
गेरुवे और भगवा रंगों से लिपटी
देवघर जाने वाले यात्रियों की गूँज
घर की पुजा और झंडा मेला की यादें
साथ लाया था
पलायन की भट्ठी में
झुलस रहा हूँ
और बुलबुले से ख्वाबों के चक्कर में
खुद अपनो से दुर
होता जा रहा हूँ
जिसनें सिंचा बचपन
बनाया जवान
वह कराह रहा है
वह मेरी यादों को संजोए
टकटकी लगाए
बाट जोह रहा है ।