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सावन का महीना हो / वज़ीर आग़ा
Kavita Kosh से
सावन का महीना हो
हर बूंद नगीना हो
क़ूफ़ा हो ज़बां उसकी
दिल मेरा मदीना हो
आवाज़ समंदर हो
और लफ़्ज़ सफ़ीना हो
मौजों के थपेड़े हों
पत्थर मिरा सीना हो
ख़्वाबों में फ़क़त आना
क्यूं उसका करीना हो
आते हो नज़र सब को
कहते हो, दफ़ीना हो