भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सावन लागो रे मन भावन / बघेली
Kavita Kosh से
बघेली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सावन लागो रे मन भावन
हां हां सावन लागो रे मन भावन
कि काटी दूब हरिआय
विरना लेवउवा अरे आये ना
घर डोली राख्यों सजाय
हुर जहा हा हा