भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सास के विलोके सिंहिनी सी जमुहाई लेत / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सास के विलोके सिंहिनी सी जमुहाई लेत
ससुर के विलोके बार-बार मुँह बावती।
ननद के विलोके नागिन सी फुंफकार करें
देवर के विलोके डाकिनी सी डेरवावती।
रात दिन झगरे मोछ जारे ऊ पड़ोसियन के
पति के विलोके खाँव-खाँव कर धावती।
कर्कशा कुचाली कुबुद्धि कलही जो नार
करम जेकर फूटे नारी अइसी घरे आवती।