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साहस / नंदेश निर्मल

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तुमको आज सुनाता हूँ मैं
सुन लो बच्चों एक कहानी
त्याग अंग है मानवता का
ढाल सको तो तुमभी ढलना
दो बालक थे बड़े साहसी
यह बीती है बहुत पुरानी।

 
तुमको आज सुनाता हूँ मैं
सुन लो बच्चों एक कहानी।

अंग देश के वे बालक थे
जहाँ अचानक विपदा आई
एक दुष्ट दानव ने आकार
वहाँ घोर दहशत फैलायी
डर से बस्ती कांप रही थी।
यह किस्सा कहती थे नानी।

तुमको आज सुनाता हूँ मैं
सुन लो बच्चों एक कहानी।

असुरराज था फूल रहा था
मन माफिक भोजन पाकर वह
रोज एक बस्ती के जन को
बड़े मजे से चाट रहा था
आधी बस्ती सलट गई थी
करुणा गाथा कहूँ जवानी

तुमको आज सुनाता हूँ मैं
सुन लो बच्चों एक कहानी।
 
एक दिवस ऐसा भी आया
बूढ़ी दादी तड़प रही थी
छाती धर कर विलख रही थी
बीस बरस की भरी जवानी
उसका पोता भेंट चढ़ेगा
डर के थे सब पानी-पानी।

तुमको आज सुनाता हूँ मैं
सुन लो बच्चों एक कहानी।

देख समझ कर सारी लीला
अजय-विजय ने तय कर ली थी
असुर राज को दाव चढ़ाकर
आज दुष्ट का अन्त करेगा
लड़ कर बुद्धि के अस्त्रों से
लिख डालेगा नई कहानी।

तुमको आज सुनाता हूँ मैं
सुन लो बच्चों एक कहानी।

एक नहीं दो कमतर बालक
आता देख असुर हर्षित था
फिर नोकीले दाँत निकाले
भोजन खाने मचल पड़ा था
हाथ जोड़ तब बालक बोला –
“असुर राज सुन मेंरी वाणी”

तुमको आज सुनाता हूँ मैं
सुन लो बच्चों एक कहानी।

हो विनीत बालक यह बोला –
“मुझे तलो स्वादिष्ट बनाओ
तब चटकारें लेकर खाओ”।
असुरराज सुन नूतन बातें
होठों पर वह जीभ फिराया
फँस गया बुद्धू बात पुरानी।

तुमको आज सुनाता हूँ मैं
सुन लो बच्चों एक कहानी।

तुरंत असुर ने तेल मगाया
दे कराह झट से खौलाया
फिर बालक का हाथ पकड़ वह
जब दोनों बालक के हाथों
अन्त हुई यह करूण कहानी।

तुमको आज सुनाता हूँ मैं
सुन लो बच्चों एक कहानी।

बालक से धक्का खाकर वह
गिर कराह में तड़प रहा था
दोनों बालक धीर भाव में
हँस-हँस ताली पीट रहे थे
अन्त हुआ था असुरराज का
अंग देश की यही कहानी।

तुमको आज सुनाता हूँ मैं
सुन लो बच्चों एक कहानी।


धीरे बनो तुम, वीर बनो तुम
अपने साहस औ कौशल से
बुद्धिमान बन देश जगत की
बस अच्छे संतान बनो तुम
निज मस्तक को पुष्प बना कर
माँ-चरणों में दो क़ुर्बानी।