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साहिल / रेशमा हिंगोरानी

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रंज की हद्द से गुज़र कर
मेरी भीगी आँखें,
एक मानूस सा चेहरा
तलाशने निकलीं!

मगर इस अजनबी चेहरों के समंदर में उन्हें,
सिवाए अपने,
न अपना
कोई मिला अब तक!

कुछ अदद अश्क हैं
बस,

सिसकियाँ हैं,
आहें हैं॥

और इसी काफ़िले के साथ
निकल आई हूँ..

जाने किस मौज पे साहिल
नज़र आ जाए मुझे,

जाने किस मोड़ पे हो जाए
मुक्क़मल हस्ती!

22.10.93