भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिंज्या होयगी / आशा पांडे ओझा
Kavita Kosh से
सिंज्या होयगी
सांसरिक चूल्लै में
बळ उठी पसूपणा री लाय
चढगी हिंसा री कड़ाही
उबळ रियौ मिनख रौ लौई
चाल रिया है अस्त्र-शस्त्र रा
झारा, कुड़ाछा, खुरपा, चिमचा
कट रियौ है मिनखपणो साग ज्यूं
सिक रैई है सवारथ री रोटियां
परौसीजगी राजनीति री थाळियां
सजग्या सै उणमें रातां रो रंगीन
भांत-भांत रो मीठो-चूठो
लम्बूटिया है सगळा ई होडा-होडा
लड़ रिया बिणै पावण खातर
टाबर टींगर ज्यान
तगड़ो मार लियो
निरबळ रो भी बंट
कीं रैग्या भूखा
कीं लियो इण जीमण रो
भरपूर आणंद
बुझण लाग री है
समझ री सगळी बतियां
देखतां-देखतां
गहराणा लाग री है रात
बिछा ‘र लासां रा बिछावणां
ओढ ‘र विधवंश री चादरां
एक-एक कर ‘र सुवण लाग्या लोग
कितरी लाम्बी है आ रात
काटियां नी कटरी है आ रात
राम जाणै
पाछौ कद हुसी परभात।