भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिंझ्या ! / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक सिंझ्या
लारै छूटगी
एक मुडांगै
घर बारै काढ़्योड़ो सूरज बोल्यो
म्हारै ही तावडै़ री
तालामेली स्यूं लागै
रात नै गाज बीज हुसी
आंधी रेळो चालसी
कनैं कोनी कीं
फकत किरण री
एक निमळी सी‘क तूळी
दिवलां चासूं ‘क
तारा सिलगाऊँ ?
दोगा चिन्ती में
किसी‘क हूण आई
कठै ल्यूं बिसांईं ?
सुण‘र कयो
हिवडै़ में दापळ्योड़ी आस
म्हारो मिणियूं मत मसोस
जींवती राख मनैं
म्हारी पुग में है
थारी मजल !