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सिंहावलोकन / लक्ष्मी नारायण सुधाकर

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वध करने 'शम्बूक' तुम्हारा फिर से राम चला है
सावधान! 'बलि' भारत में युग-युग से गया छला है
दम्भी-छल-कपटी द्विजाचार अब तक वह शत्रु हमारा
'एकलव्य' अँगूठा काट रहा वह 'द्रोणाचार्य' तुम्हारा
'कालीदह' में कृष्ण चला फिर से उत्पात मचाने
'नागों' की बस्ती को 'अर्जुन' फिर से चला जलाने
'पुष्यमित्र' कर में नंगी लेकर तलवार खड़ा है
'वृहद्रथ' हो जा सजग, अचेतन अब तक रहा पड़ा है
'तक्षशिला' हो गयी तहस पर 'तक्षक' नहीं मरा है
वह 'शशांक' मिट गया किन्तु यह बोधि-वृक्ष हरा है
सदियों से कुचला है हमको फिर भी शेष अभी है
कश्मीर से कन्या कुमारी तक अवशेष अभी है
'शुंगवंश' के छल-कपटी शासन का अन्त निकट है
होगा नया 'महाभारत' पहले से अधिक विकट है
वह अतीत की रीति बेलची-कांड और पिपरा है
पूर्व नियोजित ‘छिडली साढू पर' का कांड खरा है
'टाइगर अशोक' है अमर शहीदों में लिख नाम गया है
आगरा-कांड से जगा क़ौम को, कर शुभ काम गया है
दलितों के जीवन में सब करते खिलवाड़ रहे हैं
ख़ून बहाकर दलितों का फिर झंडा गाड़ रहे हैं
वे ही आग लगाते, वे उसे ही बुझाने आते हैं
भस्मसात हो जाने पर घड़ियाली अश्रु बहाते हैं
दोस्त और दुश्मन की कर पाना पहचान कठिन है
नेता-अभिनेता प्राणों का लेता यह दुर्दिन है
'जनमेजय के नाग-यज्ञ' की अन्तिम यह झाँकी है
जन्मेगी जय कभी नहीं अब 'तक्षक' बाक़ी है
'मनुस्मृति' का वह विधान अब और नहीं चल पाएगा
रुका न अत्याचार तो दामन छूट सब्र का जाएगा

शक्ति-परीक्षा आज तुम्हारी जागो दलितो
विजयश्री पग चूमेगी, मत भागो दलितो
शिक्षित और संगठित हो ललकारो दलितो
अपने पुरखों का धर्म-बौद्ध बन तारो दलितो