भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिक्स्थ सेन्स / सरस दरबारी
Kavita Kosh से
अहसासों से भरा वह शब्द
जो रिश्तों की ऊँगली पकड़
खुद अपनी पहचान बनाता है
- हर रिश्ते का अपना अनुभव-
जहाँ पिता का आश्वस्त करता स्पर्श-
अपूर्व विश्वास भर जाता है-
वहीँ भ्राता का रक्षा भरा स्पर्श,
भयमुक्त कर जाता है-
पति या प्रेमी का सिहरन भरा स्पर्श-
असंख्य सितारों की मादकता भर जाता है-
तो वहीँ भीड़ की आड़ लेते लिजलिजे अजनबिओंका घिनोना,
और अनचाहे रिश्तेदारों का मौका परस्त स्पर्श-
शरीर पर लाखों छिपकलीओं की रेंगन भर जाता है-
- सभी स्पर्श!
लेकिन कितने भिन्न!!!
और इनकी सही पहचान-
ही हमारा सुरक्षा कवच है
हमारा "सिक्स्थ सेन्स"!