भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सितारे उनके इशारों पर चलने लगते हैं / राम नाथ बेख़बर
Kavita Kosh से
सितारे उनके इशारों पे चलने लगते हैं
समय के साथ जो ख़ुद को बदलने लगते हैं
अगर जुनून है ख़ुद में जहां बदलने का
कोई हो कोह , मुक़ाबिल वो गलने लगते हैं
किसी की दर्द भरी दास्तां जो सुनता हूँ
निगोड़ी आँखों से आँसू निकलने लगते हैं
बड़े कमाल की शय है ये इश्क़ का आलम
नफ़स की गर्मी से पत्थर पिघलने लगते हैं
थकान लेके मैं जब-जब भी लौटता हूँ घर
बड़े ही प्यार से बच्चे मचलने लगते हैं