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सिद्धी धमाल / मुक्ता

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आदिवासी नर्तकियाँ नाचती हैं ‘ सिद्धी धमाल ‘
आदिवासी नर्तकियों की उफनती छातियों से दूध की नदी बहती है
अग्निगर्भा ऋतंभरायें परिक्रमा करती हैं पृथ्वी की
‘ सिद्धी धमाल ‘ नाचती आदिवासी नर्तकियों नें
सुरक्षित रखा है काली नस्लों को गर्भ में
आदिवासी नर्तकियों के पूर्वज गुम नहीं हुए हीरे की खदानों में
वे उतरते हैं नृत्य की थाप पर
संगीत की प्रतिध्वनियों में गूँजते हैं पूर्वजों के स्वर
आज भी वे नाचते प्रतीत होते हैं आदिवासी नृत्य ‘ सिद्धि धमाल ‘
आदिवासी नर्तकियाँ नाचती हैं घने जंगलों में, सागर तट पर
और कभी-कभी घनी बस्तियों में
सिद्धि नर्तकियों के पुरुष साथी अभिनय करते हैं वन्य पशुओं का
बाघ, भालू, शेर और जंगली भैसे जैसे दुर्दांत पशुओं का
निर्भय नाचतीं हैं आदिवासी नर्तकियाँ पुरुषों की खूँखार दुनिया में
जंगल की बेटियाँ नाचती हैं निडर काले भयावह अंधेरे में
पुकारतीं हैं गा-गाकर उजाले की देवी को
आदिवासी नर्तकियों की ओर बढ़ने को आतुर प्रतीत होते हैं
सुदूर नक्षत्र, पहाड़ और झरने
आदिवासी नर्तकियाँ बढ़ाती हैं कदम
युद्ध से जूझती दुनिया की ओर।