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सिद्ध / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / ओक्ताविओ पाज़
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उसकी त्वचा धूप में तपकर केसरिया,
चपल हैं आँखें हिरण की तरह।
जिस ईश्वर ने उसे बनाया,
उसने कैसे उसे अकेली
छोड़ा होगा?
क्या वह अन्धा था?
यह विचित्र परिणाम नहीं है अन्धेपन का
वह एक स्त्री है
और है एक लहरदार बेल।
इस तरह
बुद्ध का सिद्धान्त हो जाता है सिद्ध :
कि इस दुनिया में रचा नहीं गया कुछ भी।
(धर्मकीर्ति, 7वीं शताब्दी)
अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’