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सिधवा के मारे बिहान / हेमलाल साहू 'निर्मोही'

अघुवा अघुवा मन बईमान होगे रे
सिधवा के मारे बिहान होगे रे।

बने गोठ के नई सुनइया, लंद फंद भाथे,
भाई-भाई में कराके झगरा, मेऊ अपन बन जाथे।
मरहा मरहा पहलवान होगे रे।

उज्जर पाखर पहिन के सब, मइनखे ल भरमाथे
काम के डर मा नेता बनके, सुक्खा धाक जमाथे।
अब तो अपने मन विरान होगे रे।

गांधी के राम राज, चीथि चीथि होगे
सपना सुराज के आज, सेती मेती होगे
घरो घर रावन दइहान होगे रे

कनिहा टोरत हे महंगाई, किलो मन भाजी बेचाये
साहेब के लबारी मां, पइसा गोठियाथे
जीयत मा मनखे मसान होगे रे।