भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिन्दबाद :छः / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
ठहरी हुई हवा नहीं
राजधानी की धमनियों में
प्रवाहित होता हुआ
ताज़ा लहु है वह।
उसके पास
चले आ रहे हैं
मदद मांगने
आदमियों के रेवड़।
अरे भिखारियों !
निर्धनता खैरात या ज़कात से नहीं मिटती
मिटती है मगर वह
संघर्ष की भट्टी में तपकर ।
सत्य से जुड़ती है किंवदंती
किंवदंती से कथा
कथा से प्रेरणा
प्रेरणा से गति
गति से यात्रा
यात्रा---माने सिंदबाद ।