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सिन्दूर और चूड़ि़यां / लालित्य ललित

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एक उम्र तक
लड़की की शादी हो जाए
तो ठीक रहता है
मां-बाप की चिंताओं में
हर पल लड़की बड़ी
हो रही है
ब्लड ‘शुगर’ की मात्रा
रक्त नलिकाओं में
विलय की तरह
और लड़की
तमाम घरेलू बातों से मुक्त
सुबह निकल पड़ती है
ऑफिस की ओर
राह में मिलती दिखती
तमाम नवविवाहिताओं को -
देख आंखों में आए
आंसु को
हल्के हाथ से
पोंछ लेती है
और हाथों को
यू देखती है
कि कब वह भी
विवाहिता होगी
कब उसकी मांग में सिंदूर
और हाथों में चूड़ी होंगी ?
कब वह अपने
घर से विदा होगी
और कब उस घर में -
जाएगी
जिसकी कल्पना, हर वह
लड़की करती है जो
उसकी उम्र की है
और अविवाहिता है !