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सियाजी के सूरत देखि झखथिन जनक रीखि / अंगिका लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
सियाजी के सूरत देखि झखथिन<ref>चिंतित हो रहे हैं; दुःखी हो रहे है; दुखड़ा रो रहे हैं</ref> जनक रीखि<ref>ऋषि</ref>, सिया भेली दान के जोग<ref>दान करने के योग्य; विवाह योग्य</ref> हे॥
आखरो<ref>ताजा; अछूता</ref> गोबर ऐंगना निपाओल, धनुखा देलैन ओठगाँय हे।
देसहिं देस सेॅ नृप सब आएल, कोय नहिं धनुखा उठाओल हे॥2॥
नगर अजोधा में बसै दसरथ राजा, हुनके जे राम लछुमन कुमार हे।
एतना जे बात सुनि हरखित जनक रीखि, नेवता हुनकॉे पेठाओल हे॥3॥
मुनि बसीठ जी के संग जनकपुर, साथें दुइ बालक आओल हे।
सबके थकित देखि बढ़ल रामचंदर, दुनु हाथ धनुखा उठाओल हे॥4॥
भेल बियाह सिया सँग रामजी के, राम लल अँगुरी लगाय हे॥5॥
शब्दार्थ
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