भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सियाळो !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
चंपैली रै
नानड़ियै फूलां सो
लजवंतो
सियाळै रो दिन,
सूरज उगतो ही करै
बिसूंजणै री हर
गूधळक्यांईं
पड़ग्यो सोपो
ओसरग्यो सागीड़ो रठ
जागगी धूण्यां
पोढ़ग्या पिणघट
सबद रै नांव
गांव में बड़तै एवड रो
एकल बाजतो टोकरियो
का मारग बगतै
मदुआ ऊंटां री गाज,
सुईं सिंझ्यां ही घुळै
डोकरै आभै री आंख
आ‘र बैठग्या
आप रै आळां
कमेड्यां‘र मोरिया
बड़ग्या मिरड़ां में
सुसिया‘र नौळिया
ठंठार स्यूं डरती दापळगी,
आखी जीवा-जूण
खाली मतीरां री लोभी लूंकड्यां
फिरै सूंघती
चारै री ढूंगरयां!