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सिर्फ़ एक कविता / जया जादवानी

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इतनी बारीक लकीरें थीं भीतर
कि दिखती भी नहीं थीं
मैंने लगभग कोरे काग़ज़ पर
लिखी समूचे जीवन में
सिर्फ़ एक कविता
जीवन से बड़ी।