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सिर्फ़ प्रतीक्षा / आग्नेय
Kavita Kosh से
कहीं कोई सूखा पेड़
फिर हरा हो गया।
कहीं कोई बादलों पर
फिर इन्द्रधनुष लिख गया।
कहीं कोई शाम का सूरज
फिर डूब गया।
हम भुतही पुलियों पर
पतलूनों की जेबों में
बादल, इन्द्रधनुष, डूबते सूरज
भरे किसकी प्रतीक्षा करते हैं।
अरे! वह हरा पेड़ तो
फिर से सूख गया!
अरे! वह लिखा इन्द्रधनुष
फिर से बादल हो गया!
अरे! वह डूबता सूरज तो
सिर्फ़ प्रतीक्षा है!