Last modified on 15 जुलाई 2016, at 01:14

सिर्फ आधी मोमबत्ती / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

सिर्फ आधी मोमबत्ती
और सारी रात
क्या करें हम बात
 
धूप की यादें
हमारे पास
उन्हें हाथों में लिये
हम सोचते हैं - काश
 
आँख में घिर आये फिर बरसात
   
वही अंधे कुएँ की
आवाज़
या कभी बजता गुफा में
एक टूटा साज़
 
थकी धुन के हैं कई आघात
 
एक रिश्ता
खुशबुओं का
उम्र-भर फिर साथ
गहराते धुओं का
 
नींद उनको ही रही है कात