भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिर्फ आधी मोमबत्ती / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
सिर्फ आधी मोमबत्ती
और सारी रात
क्या करें हम बात
धूप की यादें
हमारे पास
उन्हें हाथों में लिये
हम सोचते हैं - काश
आँख में घिर आये फिर बरसात
वही अंधे कुएँ की
आवाज़
या कभी बजता गुफा में
एक टूटा साज़
थकी धुन के हैं कई आघात
एक रिश्ता
खुशबुओं का
उम्र-भर फिर साथ
गहराते धुओं का
नींद उनको ही रही है कात