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सिर पर हरी घास का गट्ठर लिए / स्वप्निल श्रीवास्तव

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सिर पर हरी घास का

गट्ठर लिए स्त्रियाँ

सड़क से गुज़र रही हैं

यह व्यस्त सड़क है

एक मिनट में यहाँ से

दर्जनों गाड़ियाँ गुज़र जाती हैं

उनके शोर के बीच

मंथर-मंथर चलती हैं स्त्रियाँ


सिर पर हरी घास का

पहाड़ लिए वे उड़ रही हैं

उनका इधर से आना

अच्छा लगता है

वे मेरे दिनों को ताज़ा और हरा

बनाए हुए हैं

गर्मी हो या बारिश

वे इधर से गुज़रती हैं

उनकी भीगी हुई देह की

एक-एक धारी दिखाई देती है

कमर में बजती है करघन


जंगल से वे घास और

प्रकृति का खिलंदड़पन लाती हैं

वे मानसून लाती हैं और

अपने टोले में बरसने के लिए

छोड़ देती हैं


शोख़ और चंचल इन स्त्रियों को

जंगल की तरफ़ से आते देख

यह अनुभव होता है कि जैसे वे

किसी नृत्य-उत्सव से लौट

रही हों

थकी हुई फिर भी अलमस्त