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सिस्टर जी / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
अपने अच्छे विद्यालय की
मैं आज बनी हूँ सिस्टर जी
बैठो बच्चो, पुस्तक खोलो
सब मिलकर के कविता गाओ
मैं बहुत सख्त हूँ, ध्यान रखो
देरी कर कभी नहीं आओ
बोलो न बीच में गिटिरपिटिर
बेमतलब ही तुम मिस्टर जी
पढ़ने से बनते हैं ज्ञानी
पढ़ने से नाम कमाते हैं
दुनिया में हैं जो महापुरुष
पढ़ने से ही बन पाते हैं
हाजिरी सभी की ले लूँ मैं
ले आओ जरा रजिस्टर जी
खेलो, मेहनत से पढ़ो खूब
पूछो, जो तुम्हें नहीं आए
पर जो अनुशासन तोड़ेगा
मुझसे वह कड़ी सजा पाए
परवाह नहीं मुझको उसकी
हों चाहे पिता मिनिस्टर जी।