भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सिहरामन (तर्ज होली) / कृष्णदेव प्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिहरामन
सिहरामन तनिमनि भोर करे॥
रइनी के हंटते पोह के फटते
पंछी लगे हरहोर करे॥
मयना बोले चील्ह किलोले
कोइली कुंहुंक चहुं ओर करे ॥1॥

जी अनसावन रउदक घामा
झिर झिर सिसिर झकोर करे।
मद मातल बायू धूरी धुरखेले
हो हो सबद अनोर करे ॥2॥

नरगन नाचइ प्रकृति नाचइ
नरतन महल बखोर करे
अखिल जग घन नाचइ काछइ
हुमहूं नचैतूं मन मोर करे ॥3॥