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सीखना / अमित कल्ला
Kavita Kosh से
बादलों की
प्रदक्षिणा से
सीख रहा हूँ
द्वन्द्वरहित
अन्तहीन
भिगोने की कला
क्या
इस अनुभूति में
अन्तर्लीन होना
साक्षात्कार की
सहमति है
या फिर
थाह
किन्ही
कल-कल
स्मृतियों की।