सीखना / सुरेश सेन निशांत
बच्चा सीख रहा है चलना
इस कोशिश में
गिर भी रहा है बार-बार
बच्चों की इस कोशिश में
माँएँ भी शामिल रहती हैं
वे भी गिरती हैं बच्चों के संग
पर वे रोतीं नहीं
सीखने की इस क्रिया में
गिरना कितना ज़रूरी है
माँओं को ही रहता है इसका पता
या फिर उन्हें
जो पारंगत हुए हैं अपने कार्य में
रात-दिन की अथक मेहनत के बाद पूछो
उस बड़े चित्रकार से
जब पहली-पहली बार
खड़ा हुआ था वह
रंगों और काग़ज़ के सामने
अपने अनाड़ी हाथों में ब्रश लेकर
कितनी ही बार
रंगों के बिखर जाने पर
कोसा उसने अपने आप को
कितनी ही बार बना वह
हँसी का पात्र दूजों के सामने
शुरुआती उन चित्रों के कारण
कितनी ही बार
बहुत मुश्किल से रोकी है रुलाई
उस प्रसिद्ध गायक ने
जब सधते ही नहीं थे सुर,
छँटता ही नहीं था अँधेरा
खिलती ही नहीं थी ख़ुशी
खुलते ही नहीं थे
रहस्य स्वरों के
कितनी ही बार
अपने पर झुँझलाया है वह
क्रिकेट का वह बेहतरीन गेंदबाज़
जब सुधरती ही नहीं थी उससे
गेंद की दिशा
कितनी ही बार लताड़ा था
उस प्रशिक्षक ने भी उसे
कि अंधकारमय है उसका भविष्य ।
पर चलना सीखने की प्रक्रिया में
बच्चे भूल जाते हैं
गिरने की पिछली चोट
और फिर से करते हैं
प्रयत्न चलने का
एक डग चलने पर
भर जाते हैं ख़ुशी से
माँ बजाती है ताली
पर हर बार पहला क़दम उठने पर
तालियाँ ही नहीं मिलतीं
पढ़ो उस विश्वविख्यात
कवि का संस्मरण
जब उसकी पहली-पहली
काव्य-पंक्तियों को
निहारा तक नहीं था किसी ने
असफलता की कितनी ही चोटें
कितनी ही पीड़ाएँ सहने के बाद
छँटी है उदासी की धुँध
पहुँचे हैं शिखर पर
वे सब पर्वतारोही
खिली है उनके चेहरे पर
तब जाकर वह विजयी मुस्कान
कुशल शिल्पियों की
मुस्कान के पीछे
अब भी दिख जाती है वह पीड़ा
जो शिल्प सीखने के
शुरुआती दिनों में दी थी
छैनी और हथौड़ी ने
उनकी कोमल उंगलियों को
बच्चा सीख रहा है चलना
इस कोशिश में
बार-बार गिर भी रहा है ।