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सीखने की उम्र, उम्र-भर / कैलाश झा 'किंकर'

सीखने की उम्र, उम्र-भर।
साधना में क्यों भला कसर॥

वक़्त ये गुज़र न जाए यूँ
आलसी कहेगा राह-बर।

लेखिनी की धार तेज़ हो
ग़ज़्ल छोड़ पाएगी असर।

शान्ति भंग हो गयी अगर
घर नहीं लगेगा फिर से घर।

बात अब निजाम की नहीं
बात हो अवाम की मगर।

झूठ की चले न दूर तक
सत्य का मुकाम ही सफ़र।

जीत-हार से बड़ा है प्यार
दिल को जैसे लग गये हों पर।

आपको पुकारती ग़ज़ल
शायरी से क्या किसी को डर।